I found a link to an article on jagran, yahoo posted by Devender Ror ji on orkut shamshad begum community.
The link to the article is as follows:-
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/g...al/5_1_5389241/ In case somebody is interested in contributing to the Shamshad Begum community on orkut, its link is here:-
http://www.orkut.co.in/Main#Community.aspx?cmm=51179556The article is reproduced below:-
QUOTE
Apr 13, 05:42 pm
नई दिल्ली। हिंदी फिल्मों में अपनी पुरकशिश आवाज के जरिए विशिष्ट स्थान बनाने वाली शमशाद बेगम के गानों में जीवन की वह खनक मौजूद रहती है जो सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स गाने बन रहे हैं।
'लेके पहला पहला प्यार ' और 'कभी आर कभी पार' जैसे गानों में शमशाद बेगम की पुरकशिश एवं चुलबुली आवाज आज भी कानों को बेहद मधुर लगती है। करीब चार दशकों तक हिंदी फिल्मों में एक से बढ़कर एक लोकप्रिय गीतों को स्वर देने वाली शमशाद बेगम बहुमुखी प्रतिभा की गायिका है जिन्होंने फिल्मी गीतों के अलावा भक्तिपर गीत, गजल आदि भी गाए। गायकों और संगीतकारों पर प्राय: यह आरोप लगाया जाता है कि वह संगीत के चक्कर में शब्दों को पीछे धकेल देते हैं या उच्चारण के मामले में समझौता करते हैं, लेकिन शमशाद बेगम के गानों में यह तोहमत हर्गिज नहीं लगाई जा सकती। इसका कारण उनकी स्पष्ट आवाज थी। उस दौर के बेहद मशहूर संगीतकार ओपी नय्यर ने तो एक बार यहां तक कहा था कि शमशाद बेगम की आवाज मंदिर की घंटी की तरह स्पष्ट और मधुर है।
सीआईडी फिल्म में लोकधुनों पर आधारित गीत 'बूझ मेरा क्या नाम रे' गाने वाली शमशाद ने संगीतकार सी रामचंद्रन के लिए 'आना मेरी जान.. संडे के संडे' जैसा पश्चिमी धुनों पर आधारित गाना भी गया है। इस गाने को हिन्दी फिल्मों में पश्चिमी धुनों पर बने शुरुआती गानों में शुमार किया जाता है। समीक्षकों के अनुसार शमशाद बेगम की आवाज कई मायनों में पुरुष गायकों तक पर भारी पड़ती थी। मिसाल के तौर पर रेशमी आवाज के धनी तलत महमूद के साथ गाए गए युगल गीतों पर स्पष्ट तौर पर शमशाद बेगम की आवाज बीस साबित होती है। अमृतसर में 14 अपै्रल 1919 में जन्मी शमशाद बेगम उस दौर के सुपर स्टार गायक कुंदनलाल सहगल की जबरदस्त फैन थीं। एक साक्षात्कार में शमशाद बेगम ने बताया कि उन्होंने के एल सहगल अभिनीत देवदास फिल्म 14 बार देखी थी। उन्होंने सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब से संगीत की तालीम ली।
शमशाद बेगम ने अपने गायन की शुरुआत रेडियो से की। उस दौर में उन्होंने पेशावर, लाहौर और दिल्ली रेडियो स्टेशन पर गाने गाए। शुरुआती दौर में लाहौर में निर्मित फिल्मों खजांची और खानदान में गाने गाए। वह अंतत: 1944 में बंबई आ गईं। मुंबई में शमशाद ने नौशाद अली, राम गांगुली, एसडी बर्मन, सी रामचंद्रन, खेमचंद प्रकाश और ओपी नय्यर जैसे तमाम संगीतकारों के लिए गाने गाए। इनमें भी नौशाद और नय्यर के साथ उनका तालमेल कुछ खास रहा क्योंकि इन दोनों संगीतकारों ने शमशाद बेगम की आवाज में जितनी भी विशिष्टताएं छिपी थी उनका भरपूर प्रयोग करते हुए एक से एक लोकप्रिय गीत दिए।
नौशाद के संगीत पर शमशाद बेगम के जो गीत लोकप्रिय हुए उनमें ओ लागी लागी [आन], धड़ककर मेरा दिल [बाबुल], तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे [मुगले आजम] और होली आई रे कन्हाई [मदर इंडिया] शामिल हैं। लोकधुनों और पश्चिमी संगीत का अद्भुत तालमेल करने वाले संगीतकार ओपी नय्यर के संगीत निर्देशन में तो शमशाद बेगम ने मानों अपने सातों सुरों के इंद्रधुनष का जादू बिखेर दिया है। इन गानों में लेके पहला पहला प्यार, कभी आर कभी पार, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना, कजरा मोहब्ब्त वाला, मेरी नींदों में तुम मेरे ख्वाबो में तुम, ऐसे गीत हैं जो सुनने वाले को गुनगुनाने के लिए मजबूर कर देते हैं।
करीब तीन दशक तक हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखरेने के बाद शमशाद बेगम ने धीरे-धीरे पार्श्व गायन के क्षेत्र से अपने को दूर कर लिया। समय का पहिया घूमते-घूमते अब रिमिक्सिंग के युग में आ गया है। आज के दौर में भी शमशाद के गीतों का जादू कम नहीं हुआ क्योंकि उनके कई गानों को आधुनिक गायकों एवं संगीतकारों ने रीमिक्स कर परोसने का प्रयास किया। दिलचस्प है कि इनमें 'कजरा मोहब्बत वाला' कई रीमिक्स गाने भी लोकप्रिय हो गए।