AAP AUR HUM
SANGEET KA SAFAR TODAY FIND ONE NEWS
MD,KHAYYAM JI HE SAID TODAY HINDI MOVIE
MUSIC MIS GUDIA ?

SORRY I U/L FROM PAPER CUTTING BUT THIS IN HINDI.

'नौजवानों को गुमराह कर रही हैं फ़िल्में'

वेदिका त्रिपाठी
मुंबई





ख़य्याम का संगीत हिंदी सिनेमा में विशिष्ट स्थान रखता है
कहते हैं कि इंसान के अंदर लगन और काम करने का जज़्बा हो तो उसके लिए उम्र कभी बाधा नहीं बनती. इसी कहावत को यथार्थ किया है 80 वर्षीय संगीतकार मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी ने.
करीब 55 साल फ़िल्म इंडस्ट्री में बिता चुके ख़य्याम का जोश आज भी देखते ही बनता है. वही ऊर्जा, वही लगन और कुछ अलग, कुछ हट के करने का संकल्प, उनमें आज भी बख़ूबी दिखाई देता है.


रिमिक्स अब ज़रूरत से ज़्यादा हो गया है. किसी ताल और लय को तेज या धीमा करके और आसपास कुछ लोगों के भद्दे डांस करने और गाने से रिमिक्स नहीं बनता है.


ख़य्याम, संगीतकार

इस उम्र में जहाँ लोग रिटायरमेंट लेने की सोचते हैं वहीं ख़य्याम अपनी फ़िल्मों और एलबम में काफ़ी व्यस्त हैं. अगर अच्छे विषय मिले तो अगले कई वर्षों तक इनकी काम करने की इच्छा है.

ख़य्याम कहते हैं, "ये जानकर कि लोग मेरे संगीत को आज भी पसंद करते हैं, मैं बहुत उत्साहित हो उठता हूँ."

करीब दस साल बाद ख़य्याम ने फ़िल्म इंडस्ट्री में प्लस इंटरटेनमेंट की फ़िल्म 'बनारस 1918- ए लव स्टोरी' और गौतम घोष की फ़िल्म 'यात्रा' से वापसी की है और तलत अज़ीज़ के साथ एक एलबम भी कर रहे हैं.

इतने सालों तक फ़िल्म उद्योग से दूर रहने का करने कारण पूछने पर वे कहते हैं, "फ़िल्मों के विषय मुझे पसंद नहीं आते थे और जब तक विषय मेरे मन का नहीं होता है, मैं हामी नहीं भरता हूँ."

आज का संगीत

ख़य्याम कहते हैं, "आजकल की फ़िल्में गंदेपन, नंगेपन और पिस्तौलबाज़ी पर आधारित होती हैं. ऐसे में इन फ़िल्मों का संगीत भी कानफ़ोड़ू, भद्दा और बिना किसी अर्थ का होता जा रहा है. ऐसी फ़िल्मों का संगीत ख़य्याम कभी नहीं दे सकता है."


आजकल की फ़िल्में गंदेपन, नंगेपन और पिस्तौलबाज़ी पर आधारित होती हैं. ऐसी फ़िल्मों का संगीत ख़य्याम कभी नहीं दे सकता है


ख़य्याम, संगीतकार

वे बताते हैं कि फ़िल्म रज़िया सुल्तान में संगीत की गहराई को समझने के लिए उन्होंने रज़िया सुल्तान की सारी किताबें पढ़ी जिसमें तक़रीबन छह-सात महीने लगे थे.

आजकल की फ़िल्मों पर ख़य्याम गहरी चिंता व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि आजकल की फ़िल्में मनोरंजन के नाम पर दर्शकों को गुमराह कर रही हैं.

ख़य्याम कहते हैं कि पहले की फ़िल्मों में एक मर्यादा हुआ करती थी जिसका निर्देशक भी बख़ूबी पालन करते थे.

शुरुआत

ख़य्याम हीरो बनना चाहते थे पर घरवालों को इनका हीरो बनने का सपना बिल्कुल रास नहीं आ रहा था. इन सबसे बेख़बर ख़य्याम अपने हीरो बनने के सपने को साकार करने के लिए घरवालों की मर्ज़ी के बिना अपने गाँव से दिल्ली आ गए.

उस ज़माने में हीरो बनने के लिए गाना ज़रूरी होता था इसलिए ख़य्याम ने पं. अमरनाथ और पं. हुस्नलाल भगतराम से शुरूआती संगीत, राग आदि की शिक्षा भी ली.

क़रीब पांच साल बाद अपनी किस्मत आज़माने के लिए वह मुंबई पहुँच गए. वहाँ भी बात बनते न देख ख़य्याम उस वक्त के सबसे मशहूर संगीतकार किस्टी बाबा से मिलने लाहौर पहुँचे.

उन्होंने क़रीब छह महीने तक किस्टी बाबा के साथ काम किया.

संगीतकार ख़य्याम

ख़य्याम को ज़ोहराबाई अंबालेवाली के साथ फ़िल्म 'रोमियो एण्ड जुलिएट' करने का मौका मिला. फ़िल्म फ़ुटपाथ से इन्होंने श्रोताओं के दिल में अपने मधुर संगीत को पिरोना शुरू कर दिया.


ख़य्याम आज भी ताज़गी से भरे और जोशीले अंदाज़ में नज़र आते हैं

फिर सुबह होगी, उमराव जान, रज़िया सुल्तान, कभी-कभी, शोला और शबनम, आखिरी ख़त जैसी कई अन्य फ़िल्मों ने इनके मधुर संगीत का डंका बजा दिया.

फिल्म रज़िया सुल्तान के गाने 'ऐ दिले नादां...' से तो ख़य्याम ने ऊंचाइयों का एक नया शिखर पार कर लिया. पूरी इंडस्ट्री में यह गाना गूँज उठा था.

ख़य्याम बताते हैं, "संगीतकार के रूप में मेरी पहली पगार 125 रूपए की थी, जिसे बीआर चोपड़ा ने फिल्म 'चांदनी चौक' में मेरे काम से खुश होकर दिया था.

ख़य्याम बताते हैं, "मुझे याद है एक बार यश चोपड़ा ने मुझसे कहा कि तुम्हारी फिल्में जुबली नहीं होती हैं, यू आर अनलकी इन दिस."

यश चोपड़ा की यह बात उनके मन को छू गई. उसके बाद ख़य्याम की फ़िल्मों का जुबली दौर शुरू हुआ. कभी-कभी, त्रिशूल, नूरी, ख़ानदान, थोड़ी-सी बेवफ़ाई, बाज़ार आदि फ़िल्मों के साथ.

रिमिक्स

ख़य्याम रिमिक्स को एकदम ग़लत मानते हैं. वह कहते हैं, "असली संगीतकार का नाम मिटाकर नए का नाम डालना कहाँ का इंसाफ़ है."

ख़य्याम कहते हैं, "रिमिक्स अब ज़रूरत से ज़्यादा हो गया है. किसी ताल और लय को तेज या धीमा करके और आसपास कुछ लोगों के भद्दे डांस करने और गाने से रिमिक्स नहीं बनता है."

वह कहते हैं, "कंपनियाँ तो मुनाफ़ा कमा रही हैं लेकिन नए संगीतकारों के साथ ग़लत कर रहीं हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो नए संगीतकार अपनी धुन कभी नहीं बना पाएँगे."

करीब 225 धुनें रिकॉर्ड कर चुके ख़य्याम किसी भी फ़िल्म के लिए तब तक हाँ नहीं करते जब तक कि वह उस कहानी और साथ काम करने वाली टीम से संतुष्ट नहीं हो जाते

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