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Discovering Geeta Dutt

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parag_sankla
post May 17 2009, 11:54 AM
Post #61


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http://podcast.hindyugm.com/2009/05/sunday...geeta-dutt.html


गीता दत्त और प्रेम गीतों की भाषा


हिंदी चित्रपट संगीत में अलग अलग प्रकार के गीत बनाते हैं. लोरी, भजन, नृत्यगीत, हास्यगीत, कव्वाली, बालगीत और ग़ज़ल. इन सब गानों के बीच में एक मुख्य प्रकार जो हिंदी फिल्मों में हमेशा से अधिक मात्रा में रहता हैं वह हैं प्रणयगीत यानी कि प्रेम की भाषा को व्यक्त करने वाले मधुर गीत! फिल्म चाहे हास्यफिल्म हो, या भावुक या फिर वीररस से भरपूर या फिर सामजिक विषय पर बनी हो, मगर हर फिल्म में प्रेम गीत जरूर होते हैं. कई फिल्मों में तो छः सात प्रेमगीत हुआ करते हैं.

चालीस के दशक में बनी फिल्मों से लेकर आज की फिल्मों तक लगभग हर फिल्म में कोई न कोई प्रणयगीत जरूर होता हैं. संगीत प्रेमियोंका यह मानना है कि चालीस, पचास और साठ के दशक हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णयुग हैं. इन सालों में संगीतकार, गीतकार और गायाकों की प्रतिभा अपनी बुलंदियों पर थी.

गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे.

सबसे पहले हम सुनेंगे इस मृदु मधुर युगल गीत को जिसे गाया हैं गीता दत्त और किशोर कुमार ने फिल्म मिस माला (१९५४)के लिए, चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में. "नाचती झूमती मुस्कुराती आ गयी प्यार की रात" फिल्माया गया था खुद किशोरकुमार और अभिनेत्री वैजयंती माला पर. रात के समय इसे सुनिए और देखिये गीता की अदाकारी और आवाज़ की मीठास. कुछ संगीत प्रेमियों का यह मानना हैं कि यह गीत उनका किशोरकुमार के साथ सबसे अच्छा गीत हैं. गौर करने की बात यह हैं कि गीता दत्त ने अभिनेत्री वैजयंती माला के लिए बहुत कम गीत गाये हैं.



जब बात हसीन रात की हो रही हैं तो इस सुप्रसिद्ध गाने के बारे में बात क्यों न करे? शायद आज की पीढी को इस गाने के बारे में पता न हो मगर सन १९५५ में फिल्म सरदार का यह गीत बिनाका गीतमाला पर काफी मशहूर था. संगीतकार जगमोहन "सूरसागर" का स्वरबद्ध किया यह गीत हैं "बरखा की रात में हे हो हां..रस बरसे नील गगन से". उद्धव कुमार के लिखे हुए बोल हैं. "भीगे हैं तन फिर भी जलाता हैं मन, जैसे के जल में लगी हो अगन, राम सबको बचाए इस उलझन से".



कुछ साल और पीछे जाते हैं सन १९४८ में. संगीतकार हैं ज्ञान दत्त और गाने के बोल लिखे हैं जाने माने गीतकार दीना नाथ मधोक ने. जी हाँ, फिल्म का नाम हैं "चन्दा की चांदनी" और गीत हैं "उल्फत के दर्द का भी मज़ा लो". १८ साल की जवान गीता रॉय की सुमधुर आवाज़ में यह गाना सुनते ही बनता है. प्यार के दर्द के बारे में वह कहती हैं "यह दर्द सुहाना इस दर्द को पालो, दिल चाहे और हो जरा और हो". लाजवाब!



प्रणय भाव के युगल गीतों की बात हो रही हो और फिल्म दिलरुबा का यह गीत हम कैसे भूल सकते हैं? अभिनेत्री रेहाना और देव आनंद पर फिल्माया गया यह गीत है "हमने खाई हैं मुहब्बत में जवानी की कसम, न कभी होंगे जुदा हम". चालीस के दशक के सुप्रसिद्ध गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ गीता रॉय ने यह गीत गाया था सन १९५० में. आज भी इस गीत में प्रेमभावना के तरल और मुलायम रंग हैं. दुर्रानी और गीता दत्त के मीठे और रसीले गीतों में इस गाने का स्थान बहुत ऊंचा हैं.



गीतकार अज़ीज़ कश्मीरी और संगीतकार विनोद (एरिक रॉबर्ट्स) का "लारा लप्पा" गीत तो बहुत मशहूर हैं जो फिल्म एक थी लड़की में था. उसी फिल्म में विनोद ने गीता रॉय से एक प्रेमविभोर गीत गवाया. गाने के बोल हैं "उनसे कहना के वोह पलभर के लिए आ जाए". एक अद्भुत सी मीठास हैं इस गाने में. जब वाह गाती हैं "फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए, हाय, फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए" तब उस "हाय" पर दिल धड़क उठता हैं.



जो अदा उनके दर्दभरे गीतों में, भजनों में और नृत्य गीतों में हैं वही अदा, वही खासियत, वही अंदाज़ उनके गाये हुए प्रेम गीतों में है. उम्मीद हैं कि आप सभी संगीत प्रेमियों को इन गीतों से वही आनंद और उल्लास मिला हैं जितना हमें मिला.

उन्ही के गाये हुए फिल्म दिलरुबा की यह पंक्तियाँ हैं:
तुम दिल में चले आते हो
सपनों में ढले जाते हो
तुम मेरे दिल का तार तार
छेड़े चले जाते हो!
गीता जी, आप की आवाज़ सचमुच संगीत प्रेमियों के दिलों के तार छेड़ देती है. और भी हैं बहुत से गीत, जिन्हें फिर किसी रविवार को आपके लिए लेकर आऊँगा.

प्रस्तुति - पराग संकला


This post has been edited by parag_sankla: May 17 2009, 12:46 PM

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parag_sankla
post Sep 14 2009, 11:30 PM
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One more article talking about the initial years of Geeta ji's career (1946 to 1949) coming up soon..

smile1.gif

Regards
Parag

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parag_sankla
post Sep 21 2009, 08:26 PM
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An excellent blog on Geeta ji by our friend Punya is here:

http://punyaatwork.blogspot.com/

गीता दत्त



यह नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है - सेपिया टोन में रंगी एक तस्वीर - एक साधारण पर आकर्षक चेहरा, नाक में एक छोटी लौंग, माथे पर एक मध्यम आकार की बिंदी और कानों में झुमके।

पर इस चेहरे में सबसे आकर्षक चीज़ है - होठों पर एक अधखिली मुस्कान।

वो मुस्कान - जो गीता दत्त नामक व्यक्तित्व का जीवन समावेश है।


करीब २ साल पहले, रात को लेटे हुए AIR FM Gold सुन रही थी। उन्ही दिनों मेरी दिलचस्पी पुराने गीतों और फिल्मों की तरफ बढ़नी शुरू हुई थी. रेडियो सुनते सुनते पता नहीं क्या सोच रही थी कि एक गीत बजने लगा - "तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले..."

और उस एक पल ने मेरा सारा ध्यान उस आवाज़ कि ओर ला खड़ा किया - एक अनजानी आवाज़।

अभी तक पुराने दौर कि गायिकाओं के रूप में सिर्फ आशा - लता की आवाज़ से परिचित थी।पर यह नयी आवाज़ किसकी है? वह गीत ख़त्म हो गया पर वह आवाज़ मन में बैठ गयी।


Google पर ढूँढने पर उस गीत के बारे में जानकारी मिली:

फिल्म - बाज़ी

संगीत - सचिन देव बर्मन
गायिका - गीता दत्त

और अगले ही पल Google Image पर यह नाम टाइप करके enter दबा दिया।

कौन है इस अनुपम, अद्वितीय आवाज़ कि मालिक -गीता दत्त?

और सबसे पहली तस्वीर वही - सेपिया टोन में रंगी हुई - अधखिली मुस्कान के साथ - गीता दत्त।

तब से अब तक, मेरे लिए गीताजी कि पहचान बन गयी है वह तस्वीर और वह गीत - "तदबीर से..."


1950 की बात है - रिकॉर्डिंग स्टूडियो में इसी गीत की रिकॉर्डिंग चल रही थी। फिल्म के निर्देशक भी वहां उपस्थित थे - गुरु दत्त। गीत की रिकॉर्डिंग तो ख़त्म हो गयी, पर वह आवाज़ गुरु दत्त के मन में बैठ गयी।


आज पचास और साठ का दशक हिंदी सिनेमा का 'स्वर्णिम युग' कहलाता है और जो नाम उस युग की पहचान के रूप में सामने आते हैं, उनमें से मेरा प्रिय एक नाम है - गुरु दत्त!

आज भी हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का स्वर्णिम स्थान है। उनकी 'प्यासा', 'कागज़ के फूल' और 'साहिब बीबी और गुलाम' कालजयी कृतियाँ घोषित हो चुकी हैं।

पर गीता दत्त?

इन कालजयी कृतियों में महत्त्वपूर्ण योगदान के बाद भी, यह नाम समय की लहरों में डूब-सा गया है.

यह दीगर की बात है कि 1950 से पहले नज़ारा इससे ठीक उल्टा था। गीता दत्त - हिंदी और बंगला संगीत में यह नाम स्थापित हो चुका था। और गुरु दत्त - गुमनामी से निकल अपनी पहचान तलाशता एक नाम।


और दिलचस्प बात यह है कि मैं इनमें से जब भी कोई एक नाम सोचती हूँ, तो दूसरा नाम स्वतः ही जेहन में दौड़ा चला आता है।' गुरु - गीता' - मेरे लिए ये एक ही नाम हैं - एक दुसरे के पूरक।


बहरहाल, आज भी जब कभी हम रेडियो पर यदा कदा "ऐ दिल मुझे बता दे...", "मेरा नाम चिन चिन चू...", "बाबूजी धीरे चलना..." या "ठंडी हवा काली घटा..." सुनते हैं, तो पैर अपने आप ही थिरक उठते हैं और हम खुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते।पर वह आवाज़ हम में से कितने लोग जानते हैं - पहचानते हैं?


और ये तो सिर्फ कुछ चुनिन्दा गीत हैं जो रेडियो पर सुनाई दे जाते हैं. गीता दत्त के गीतों का संसार इनसे कई गुना बड़ा है. फिर भी वह संसार आज गुमनामी की ओर अग्रसर है.
जहाँ आज भी आशा - लता जी के कई पुराने गीत रेडियो, टी।वी., यहाँ तक कि reality shows में भी गाये जाते हैं - वहां से गीताजी का नाम क्यों नदारद है?

जबकि लता और गीता - ये दो ही नाम ऐसे थे जिन्होंने 1950-60 के ज्यादातर गीतों को अपनी आवाज़ दी है। आशा जी को तो इन दो महारथियों के बीच अपनी जगह बनाने में काफी वक़्त लग गया था। और अगर इस गुमनामी कि वजह - गीताजी को गुज़रे सालों हो गए हैं - है, तो फिर क्यों आज भी रफ़ी साहब और किशोरदा संगीत प्रेमियों के मन में जीवित हैं?


आज भी जब कहीं पुराने गीतों की महफिल सजती है, तो मैं तत्परता से गीताजी का नाम ढूंढती हूँ। किसी अखबार में पुराने दौर के संगीत के ऊपर लेख पढ़ती हूँ, तो उसमें गीताजी को खोजती हूँ।orkut या facebook पर पुराने गीतों की communities में गीता दत्त का ज़िक्र तलाशती हूँ। पर 100 में से 99 बार निराशा ही हाथ लगती है।


मुझे यह सोचकर सच में बेहद दुःख होता है की लता, आशा, रफ़ी, किशोर, मुकेश और मन्ना डे की पंक्ति से गीता दत्त जी का नाम क्यों लापता हो गया? कैसे लापता हो गया?

मुझे इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढे से भी नहीं मिल पा रहा है।


जब कभी 'बादबान' का "कैसे कोई जीए ज़हर है ज़िन्दगी..." सुनती हूँ तो मन भर आता है।

'अनुभव' का "मुझे जान न कहो.." मेरी पलकें भिगा जाता है।

'साहिब बीबी और गुलाम' का "कोई दूर से आवाज़ दे.." सुनकर रूह काँप उठती है।

'कागज़ के फूल' का "वक़्त ने किया क्या हसीं सितम..." सुनकर गला रुंध जाया है।

और 'दो भाई' का "खो के हमको पा न सकोगे, होंगे जहाँ हम आ न सकोगे, तढ़पोगे, फरियाद करोग, एक दिन हमको याद करोगे..." मन में एक टीस जगा जाता है...

कि सच में हमने गीताजी को खो दिया है। चाहकर भी उन्हें वापस नहीं ला सकते। केवल उनकी आवाज़ के माध्यम से उन्हें याद कर सकते हैं।

और लोगों से फरियाद कर सकते हैं कि कुछ तो करके गीताजी कि याद बनाये रखें।


यह एह प्रशंसक का नम्र निवेदन है.

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parag_sankla
post Dec 20 2009, 09:48 PM
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Original article posted at :

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रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (२३)


मखमली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद साहब को संगीत प्रेमी अक्सर याद करते है उनकी दर्द भरी गज़लों के लिए. उनके गाये युगल गीत उतने याद नहीं आते है. अगर बात मेरी पसंदीदा गायिका गीता दत्त जी की हो तो उनके हलके-फुल्के गीत पसंद करने वालों की संख्या अधिक है. थोड़े संगीत प्रेमी उनके गाये भजन तथा दर्द भरे गीत भी पसंद करते है. गीताजी के गाये युगल गीतों की बात हो तो, मुहम्मद रफ़ी साहब के साथ उनके गाये हुए सुप्रसिद्ध गीत ही ज्यादा जेहन में आते है. सत्तर और अस्सी के दशक के आम संगीत प्रेमी को तो शायद यह पता भी नहीं था, कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर एक से एक खूबसूरत और सुरीले गीत एक साथ गाये है. सन १९८४ के करीब एक नौजवान एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस ) कंपनी में नियुक्त किया गया. यह नौजवान शुरू में तो शास्त्रीय संगीत के विभाग में काम करता था, मगर उसे पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों में काफी दिलचस्पी थी. गायिका गीता दत्त जी की आवाज़ का यह नौजवान भक्त था. उसीके भागीरथ प्रयत्नोके के बाद एक एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड प्रसिद्द हुआ "दुएट्स टू रेमेम्बर" (यादगार युगल गीत) : तलत महमूद - गीता दत्त". पहेली बार तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी के गाये हुए सुरीले और मधुर गीत आम संगीत प्रेमी तक पहुंचे. खुद तलत महमूद साहब इस नौजवान से प्रभावित हुए और जाहीर है बहुत प्रसन्न भी हुए. इस नौजवान का नाम है श्री तुषार भाटिया जी.

इन्ही की अथक परिश्रमों के के बाद गीता जी के गाये गानों के कई एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड सिर्फ तीन साल में एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस) कंपनी ने बनाकर संगीत प्रेमियों को इनसे परिचय कराया. आगे चलकर श्री हरमिंदर सिंह हमराज़ जी ने हिंदी फिल्म गीत कोष प्रसिद्द किये, जिनसे यह जानकारी मिली कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर कुल २६ गीत हिंदी फिल्मों के लिए गाये तथा एक एक गैर फ़िल्मी गीत भी गाया. गौर करने वाली बात यह है कि जिन संगीतकारों ने तलत साहब को एक से एक लाजवाब सोलो गीत दिए (नौशाद, अनिल बिस्वास, मदनमोहन) उन्होंने तलत साहब और गीताजी के साथ युगल गीत नहीं बनाए. उसी तरह बर्मनदा, नय्यर साहब, चित्रगुप्त साहब ने भी गीताजी और तलत साहब के लिए युगल गीत नहीं बनाए. इन २६ गीतों के मौसीकार है : हेमंत कुमार, हंसराज बहल, सी रामचंद्र, खेमचंद प्रकाश, विनोद, बसंत प्रकाश , बुलो सी रानी, हुस्नलाल - भगतराम , राम गांगुली , जिम्मी सिंह, सुबीर सेन, दान सिंह , सन्मुख बाबू, हफीज खान, अविनाश व्यास, घंटासला, रोबिन चत्तेर्जी और मदन मोहन. एक बात तो जाहीर है, कि इनमें से ज्यादातर गीत कम बजेट वाली फिल्मों के लिए बनाए गाये थे. मगर इसका यह मतलब नहीं की हम उनका लुत्फ़ नहीं उठा सकते. लीजिये आज प्रस्तुत है इन्ही दो मधुर आवाजों से सजे हुए कुछ दुर्लभ गीत:

१) पहली प्रस्तुती है फिल्म मक्खीचूस (१९५६) से, जिसके कलाकार थे महिपाल और श्यामा. संगीतकार है विनोद (एरिक रोबर्ट्स) और गीतकार है पंडित इन्द्र. यह एक हास्यरस से भरी फिल्म है और यह गीत भी हल्का फुल्का रूमानी और रंजक है. अभिनेता महिपाल ज्यादातर पौराणीक फिल्मों के लिए प्रसिद्द थे, मगर इस फिल्म में उनका किरदार ज़रूर अलग है. गीताजी की आवाज़ और श्यामा के जलवे गीत को और भी मजेदार बना देते है. तलत साहब भी इस हास्य-प्रणय गीत में मस्त मौला लग रहे है. इस गीत के रिकार्ड पर एक अंतरा कम है, इसलिए हमने यह गीत फिल्म के ओरिजिनल साउंड ट्रैक से लिया है, जिसमे वह अंतरा ("जेंटल मन समझ कर हमने तुमको दिल दे डाला") भी मौजूद है.

Makkhee Choos - O Arabpati Ki Chhori - Geeta Dutt & Talat Mahmood



२) अगला गीत है बिलकुल अलग भावों में, फिल्म संगम (१९५४) से. संगीतकार है राम गांगुली, गीतकार हैं शमशुल हुदा बिहारी साहब. फ़िल्म के कलाकार है शेखर, कामिनी कौशल, शशिकला आदी. यह गीत प्रणय रस में डूबा हुआ है और सादे बोलों को राम गांगुली साहब ने खूबसुरती से स्वर बद्ध किया है. गीत में "संगम" शब्द भी आता है, जिससे यह पता चलता है कि यह फिल्मका शीर्षक गीत हो सकता है. इस फिल्म का वीडियो उपलब्ध ना होने के कारण इस बात का पता नहीं कि यह गीत मुख्य कलाकारों पर फिल्माया गया था या नहीं. चलिए इस सुरीले गीत का आनंद लेते है

Sangam - Raat hain armaan bhari - Geeta Dutt & Talat Mahmood



३) हंसराज बहल एक और ऐसे संगीतकार है जो अत्यंत प्रतिभाशाली होने के बावजूद आज की पीढी को उनके बारे में ख़ास जानकारी नहीं है. सन १९५५ में एक फिल्म आयी थी "दरबार" जिसके गीत लिखे थे असद भोपाली साहब ने और संगीत था हंसराज बहल साहब का. इस फिल्म के बारे में अन्य कोई भी जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध नहीं है.(इसी शीर्षक की एक फिल्म पाकिस्तान में सन १९५८ में बनी थी, जिसके बारे में कुछ जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध है). प्रस्तुत गीत विरहरस में डूबा हुआ है, और ऐसे गीत को तलत साहब के अलावा और कौन अच्छे से गा सकता है. आप ही इसे सुनिए और सोचिये की हंसराज बहल, असद भोपाली, तलत महमूद और गीता दत्त के प्रयासों से सजे इस गीत को संगीत प्रेमियों ने क्यों भुला दिया ?

Darbaar - Kyaa paaya duniyane - Geeta Dutt & Talat Mahmood



४) संगीतकार और गायक हेमंत कुमार जितने प्रतिभाशाली कलाकार थे उससे भी ज्यादा महान इंसान थे. खुद गायक होते हुए भी कई अन्य गायाकों से भी उन्होंने गीत गवाए. मुहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, सुबीर सेन, किशोर कुमार ऐसे कई नाम इस में शामिल है. लीजिये अब प्रस्तुत हैं फिल्म बहू (१९५५) का गीत जिसके संगीतकार है हेमंत कुमार और गीतकार हैं एक बार फिर से शमशुल हुदा बिहारी साहब. फिल्म बहु के निर्देशक थे शक्ति सामंता साहब और कलाकार थे कारन दीवान, उषा किरण, शशिकला आदी. इस फिल्म में हेमंत कुमार साहब ने तलत महमूद और गीता दत्त से एक नहीं,दो गीत गवाए. दोनों भी सुरीले और मीठे प्रणय गीत है. आज का प्रस्तुत गीत है "देखो देखो जी बलम".

Bahu - Dekho dekho jee balam - Geeta Dutt & Talat Mahmood



५) अब बारी है फिल्म शबिस्तान (१९५१) की. आज हमने इस फ़िल्म के एक नहीं दो गीत चुने है. पहला गीत है "हम हैं तेरे दीवाने, गर तू बुरा ना माने". इस गीत की खासियत यह है की इसकी पहली दो पंक्तिया संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब ने खुद गाई है मगर रिकार्ड पर उनका नाम ना जाने क्यों नहीं आया. यह गीत भी प्रणय रस और हास्य रस से भरपूर है. "अरे हम को चला बनाने"..ऐसी पंक्तिया अपने शहद जैसी आवाज़ में गीता जी ही गा सकती है. गीत पूरी तरह छेड़ छाड़ से भरा हुआ है. गीतकार कमर जलालाबादी साहब ने इसे खूब सवाल जवाब के तरीके से लिखा है.

Shabistan - Hum hain tere diwaane - Geeta Dutt & Talat Mahmood



६) और अब सुनिए इसी फिल्म का एक और गीत, "कहो एक बार मुझे तुमसे प्यार". गीतकार हैं कमर जलालाबादी साहब और संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब. गौर करने की बात यह भी है कि इसी फिल्म के कुछ गीत मदन मोहन साहब ने भी स्वरबद्ध किये. उन्होंने भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में एक छेड़ छाड़ भरा प्रणय गीत बनाया था, उसे फिर कभी सुनेंगे. फिल्म के कलाकार थे श्याम और नसीम बानो (अभिनेत्री सायरा बानो की माँ). यह बहुत दुःख की बात है कि इस फिल्म के शूटिंग के दौरान अभिनेता श्याम घोड़े पर से गिरे और उनकी मृत्यु हो गयी.

Shabistan - Kaho ek baar - Geeta Dutt & Talat Mahmood



७) आज की अन्तिम प्रस्तुति हैं एक ऐसी फिल्म से जिसका नाम शायद ही किसी को मालूम होगा. सन १९५९ में यह फिल्म आयी थी जिसके संगीतकार थें मनोहर और गीत लिखे थे अख्तर रोमानी ने. फिल्म का नाम है "डॉक्टर जेड" (Doctor Z) और नाम से तो ऐसा लगता है कि यह कम बजट की कोई फिल्म होगी. ऐसी फिल्म में भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में यह अत्यंत मधुर और सुरीला गीत बनाया गया. हमारी खुश किस्मती हैं कि पचास साल के बाद भी हम इस को सुन सकते है और इसका आनंद उठा सकते है. "दिल को लगाके भूल से, दिल का जहां मिटा दिया, हमने भरी बहार में अपना चमन जला दिया"..वाह वाह कितना दर्द भरा और दिल की गहराई को छू लेने वाला गीत है यह.

Doctor Z - Dilko lagake bhool se - Geeta Dutt & Talat Mahmood



हमें आशा है कि आप भी इन दुर्लभ गीतों का आनंद उठाएंगे और हमारे साथ श्री तुषार भाटिया जी के आभारी रहेंगे.

प्रस्तुति- पराग सांकला

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