Hindi Poem, by Gulshan Bawra |
Hindi Poem, by Gulshan Bawra |
Jay |
Jul 6 2005, 04:50 AM
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#1
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http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mer...ra_bharat17.htm
मेरे देश की धरती मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते हैं सुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई बजे आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है क्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है इस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार तेरा यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार तेरा मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से रंग बना बसंती भगतसिंह रंग अमन का वीर जवाहर से मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती - गुलशन बावरा This post has been edited by Jay: Dec 29 2008, 05:28 AM Life is music, music is life...
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